ऐश से क्यूँ ख़ुश हुए क्यूँ ग़म से घबराया किए
ज़िंदगी क्या जाने क्या थी और क्या समझा किए
नाला-ए-बे-ताब लब तक आते आते रह गया
जाने क्या शर्मीली नज़रों से वो फ़रमाया किए
इश्क़ की म'असूमियों का ये भी इक अंदाज़ था
हम निगाह-ए-लुत्फ़-ए-जानाँ से भी शरमाया किए
नाख़ुदा बे-ख़ुद फ़ज़ा ख़ामोश साकित मौज-ए-आब
और हम साहिल से थोड़ी दूर पर डूबा किए
वो हवाएँ वो घटाएँ वो फ़ज़ा वो उस की याद
हम भी मिज़राब-ए-अलम से साज़-ए-दिल छेड़ा किए
मुख़्तसर ये है हमारी दास्तान-ए-ज़िंदगी
इक सुकून-ए-दिल की ख़ातिर उम्र भर तड़पा किए
काट दी यूँ हम ने 'जज़्बी' राह-ए-मंज़िल काट दी
गिर पड़े हर गाम पर हर गाम पर सँभला किए
ग़ज़ल
ऐश से क्यूँ ख़ुश हुए क्यूँ ग़म से घबराया किए
मुईन अहसन जज़्बी