ऐश से बे-नियाज़ हैं हम लोग
बे-ख़ुद-ए-सोज़-ओ-साज़ हैं हम लोग
जिस तरह चाहे छेड़ दे हम को
तेरे हाथों में साज़ हैं हम लोग
बे-सबब इल्तिफ़ात क्या मअ'नी
कुछ तो ऐ चश्म-ए-नाज़ हैं हम लोग
महफ़िल-ए-सोज़ ओ साज़ है दुनिया
हासिल-ए-सोज़ ओ साज़ हैं हम लोग
कोई इस राज़ से नहीं वाक़िफ़
क्यूँ सरापा नियाज़ हैं हम लोग
हम को रुस्वा न कर ज़माने में
बस-कि तेरा ही राज़ हैं हम लोग
सब इसी इश्क़ के करिश्मे हैं
वर्ना क्या ऐ 'मजाज़' हैं हम लोग
ग़ज़ल
ऐश से बे-नियाज़ हैं हम लोग
असरार-उल-हक़ मजाज़