ऐसे छूते हैं तसव्वुर में तुझे हम चुप-चाप
जैसे फूलों को छुआ करती है शबनम चुप-चाप
तर्क-ए-उल्फ़त पे भी कर जाते हैं अक्सर गुमराह
मेरे ख़्वाबों को तिरे गेसू-ए-पुर-ख़म चुप-चाप
जैसे करती ही नहीं तंग हमें ये मासूम
कैसे जाती है शब-ए-हिज्र सहर-दम चुप-चाप
कोई मिलता ही नहीं उस को सुख़न का मौज़ूअ'
बैठी रहती है मेरे पास शब-ए-ग़म चुप-चाप
शोरिश-ए-वक़्त ने बख़्शी नहीं जा-ए-अफ़सोस
या'नी करना ही पड़ा ज़ीस्त का मातम चुप-चाप
मौज-ए-हंगाम-ए-चराग़ाँ है न वो रंग-ए-अबीर
शोख़ी-ए-ईद भी ख़ामोश मोहर्रम चुप-चाप
मेरी आँखें हैं तिरे हुस्न की गोया तस्वीर
मैं ने देखा है तिरे हुस्न का आलम चुप-चाप
दौर-ए-इबलीस के ये बादा-गुसारान 'मजाज़'
पीते रहते हैं जहन्नम का जहन्नम चुप-चाप
ग़ज़ल
ऐसे छूते हैं तसव्वुर में तुझे हम चुप-चाप
मजाज़ जयपुरी