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ऐनक के दोनों शीशे ही अटे हुए थे धूल में | शाही शायरी
ainak ke donon shishe hi aTe hue the dhul mein

ग़ज़ल

ऐनक के दोनों शीशे ही अटे हुए थे धूल में

अमीक़ हनफ़ी

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ऐनक के दोनों शीशे ही अटे हुए थे धूल में
हाथ पड़ गया काँटों पर फूलों के बदले भूल में

छूते ही आशाएँ बिखरीं जैसे सपने टूट गए
किस ने अटकाए थे ये काग़ज़ के फूल बबूल में

इश्क़ के हिज्जे भी जो न जानें वो हैं इश्क़ के दावेदार
जैसे ग़ज़लें रट कर गाते हैं बच्चे स्कूल में

अब रातों को भी बाज़ारों में आवारा फिरते हैं
पहले भँवरे हो जाते थे बंद कँवल के फूल में

मोटी डालों वाले पेड़ के पत्ते कैसे पीले हैं
किस ने देखा कौन रोग है छुपा हुआ जड़ मूल में