ऐ जान शब-ए-हिज्राँ तिरी सख़्त बड़ी है
हर पल मगर इस निस की ब्रम्हा की घड़ी है
हर बाल में है मेरा दिल-ए-साफ़ गिरफ़्तार
क्या ख़ूब तिरी ज़ुल्फ़ में मोतियाँ की लड़ी है
नीलम की झलक देती है याक़ूत में गोया
सो तेरे लब-ए-लाल पे मिस्सी की धड़ी है
थे ज़िक्र दराज़ी के तिरी हिज्र की शब के
क्या पहुँची शिताब आ के तिरी उम्र बड़ी है
सूरज का जलाने कूँ जिगर जियूँ दिल-ए-'फ़ाएज़'
ऐ नार तू क्यूँ धूप में सर खोल खड़ी है
ग़ज़ल
ऐ जान शब-ए-हिज्राँ तिरी सख़्त बड़ी है
फ़ाएज़ देहलवी