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ऐ इंतिज़ार-ए-सुब्ह-ए-तमन्ना ये क्या हुआ | शाही शायरी
ai intizar-e-subh-e-tamanna ye kya hua

ग़ज़ल

ऐ इंतिज़ार-ए-सुब्ह-ए-तमन्ना ये क्या हुआ

ख़ुर्शीद अहमद जामी

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ऐ इंतिज़ार-ए-सुब्ह-ए-तमन्ना ये क्या हुआ
आता है अब ख़याल भी तेरा थका हुआ

पहचान भी सकी न मिरी ज़िंदगी मुझे
इतनी रवा-रवी में कहीं सामना हुआ

चमका सके न तीरा-नसीबों की रात को
हमराज़ हैं तिरे मह-ओ-अंजुम तो क्या हुआ

मुझ से कहीं मिला ग़म-ए-दौराँ तो इस तरह
जैसे मिरी तरह से है वो भी थका हुआ

'जामी' फ़ज़ा-ए-मौसम-ए-गुल यूँ उदास है
जैसे कहीं क़रीब कोई हादसा हुआ