ऐ दीदा ख़ानुमाँ तू हमारा डुबो सका
लेकिन ग़ुबार यार के दिल से न धो सका
तुझ हुस्न ने दिया न कभू मुफ़्सिदी को चैन
फ़ित्ना न तेरे दौर में फिर नींद सो सका
जो शम्अ-तन हुआ शब-ए-हिज्राँ में सर्फ़-ए-अश्क
पर जिस क़दर मैं चाहे था उतना न रो सका
'सौदा' क़िमार-ए-इश्क़ में शीरीं से कोहकन
बाज़ी अगरचे पा न सका सर तो खो सका
किस मुँह से फिर तू आप को कहता है इश्क़-बाज़
ऐ रू-सियाह तुझ से तो ये भी न हो सका
ग़ज़ल
ऐ दीदा ख़ानुमाँ तू हमारा डुबो सका
मोहम्मद रफ़ी सौदा