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अहल-ए-नज़र की आँख में हुस्न की आबरू नहीं | शाही शायरी
ahl-e-nazar ki aankh mein husn ki aabru nahin

ग़ज़ल

अहल-ए-नज़र की आँख में हुस्न की आबरू नहीं

रशीद रामपुरी

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अहल-ए-नज़र की आँख में हुस्न की आबरू नहीं
यानी ये गुल है काग़ज़ी रंग है जिस में बू नहीं

दिल को न रंज दीजिए शौक़ से ज़ब्ह कीजिए
आप की तेग़ तेग़ है मेरा गुलू गुलू नहीं

दुश्मन ओ दोस्त के लिए चाहिए शुक्र-ए-तेग़-ए-नाज़
कौन है क़त्ल-गाह में आज जो सुर्ख़-रू नहीं

आप से दिल लगाऊँ क्यूँ जौर-ओ-सितम उठाऊँ क्यूँ
अब तो सुकूँ से काम है दर्द की जुस्तुजू नहीं

बज़्म-ए-सुख़न में ऐ 'रशीद' नग़्मे से मुझ को काम क्या
शाइर-ए-शोख़-फ़िक्र हूँ मुतरिब-ए-ख़ुश-गुलू नहीं