अग़्यार छोड़ मुझ सें अगर यार होवेगा
शायद कि यार महरम-ए-असरार होवेगा
बूझेगा क़द्र मुझ दिल-ए-आशुफ़्ता-हाल की
फाँदे में ज़ुल्फ़ के जो गिरफ़्तार होवेगा
बे-फ़िक्र मैं नहीं कि सनम मस्त-ए-ख़्वाब है
क्या क्या बला करेगा जो बेदार होवेगा
पिन्हाँ रखा हूँ दर्द कूँ लोहू की घूँट पी
कहता नहीं किसी सें कि इज़हार होवेगा
बज़्म-ए-जुनूँ में साग़र-ए-वहशत पिया जो कुइ
ग़फ़लत सें अक़्ल-ओ-होश की हुशियार होवेगा
तेरी भँवों की तेग़ के पानी कूँ देख दिल
अटका है इस सबब कि नदी पार होवेगा
रंगीं न कर तूँ दिल का महल नक़्श-ए-ऐश सें
ग़म के तबर सें मार कि मिस्मार होवेगा
बरजा है यार मुझ पे अगर मेहरबान है
बुलबुल पे गुल बग़ैर किसे प्यार होवेगा
जाता नहीं है यार की शमशीर का ख़याल
मालूम यूँ हुआ कि गले हार होवेगा
इंकार मुझ कूँ नीं है तिरी बंदगी सती
याँ क्या है बल्कि हश्र में इक़रार होवेगा
मुझ पास फिर कर आवे अगर वो किताब-रू
मकतब में दिल के दर्स का तकरार होवेगा
सेहन-ए-चमन में देख तेरे क़द की रास्ती
हर सर्द तुझ सलाम कूँ ख़मदार होवेगा
उस चश्म-ए-नीम-ख़्वाब की देखे अगर बहार
नर्गिस चमन में तख़्ता-ए-दीवार होवेगा
उस ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं सें जो यक तार झड़ पड़े
हर ख़ूब-रू कूँ तुर्रा-ए-दस्तार होवेगा
ऐ जान मेरे पास सें यक-दम जुदा न हो
जीना तिरे फ़िराक़ में दुश्वार होवेगा
रखता है गरचे आइना फ़ौलाद का जिगर
तीर-ए-निगह के सामने लाचार होवेगा
मत हो शब-ए-फ़िराक़ में बे-ताब ऐ 'सिराज'
उम्मीद है कि सुब्ह कूँ दीदार होवेगा
ग़ज़ल
अग़्यार छोड़ मुझ सें अगर यार होवेगा
सिराज औरंगाबादी