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अगरचे इश्क़ में आफ़त है और बला भी है | शाही शायरी
agarche ishq mein aafat hai aur bala bhi hai

ग़ज़ल

अगरचे इश्क़ में आफ़त है और बला भी है

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

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अगरचे इश्क़ में आफ़त है और बला भी है
निरा बुरा नहीं ये शग़्ल कुछ भला भी है

इस अश्क ओ आह में सौदा बिगड़ न जाए कहीं
ये दिल कुछ आब-रसीदा है कुछ जला भी है

ये आरज़ू है कि उस बेवफ़ा से ये पूछूँ
कि मेरे बे-मज़ा रखने में कुछ मज़ा भी है

ये कौन ढब है सजन ख़ाक में मिलाने का
कसू का दिल कभू पाँव तले मिला भी है

'यक़ीं' का शोर-ए-जुनूँ सुन के यार ने पूछा
कोई क़बीला-ए-मजनूँ में क्या रहा भी है