अगरचे इश्क़ में आफ़त है और बला भी है
निरा बुरा नहीं ये शग़्ल कुछ भला भी है
इस अश्क ओ आह में सौदा बिगड़ न जाए कहीं
ये दिल कुछ आब-रसीदा है कुछ जला भी है
ये आरज़ू है कि उस बेवफ़ा से ये पूछूँ
कि मेरे बे-मज़ा रखने में कुछ मज़ा भी है
ये कौन ढब है सजन ख़ाक में मिलाने का
कसू का दिल कभू पाँव तले मिला भी है
'यक़ीं' का शोर-ए-जुनूँ सुन के यार ने पूछा
कोई क़बीला-ए-मजनूँ में क्या रहा भी है
ग़ज़ल
अगरचे इश्क़ में आफ़त है और बला भी है
इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन