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अगरचे बे-हिसी-ए-दिल मुझे गवारा नहीं | शाही शायरी
agarche be-hisi-e-dil mujhe gawara nahin

ग़ज़ल

अगरचे बे-हिसी-ए-दिल मुझे गवारा नहीं

गोपाल मित्तल

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अगरचे बे-हिसी-ए-दिल मुझे गवारा नहीं
बग़ैर तर्क-ए-मोहब्बत भी कोई चारा नहीं

मैं क्या बताऊँ मिरे दिल पे क्या गुज़रती है
बजा कि ग़म मिरे चेहरे से आश्कारा नहीं

हवस है सहल मगर इस क़दर भी सहल नहीं
ज़ियान-ए-दिल तो है गर जान का ख़सारा नहीं

न फ़र्श पर कोई जुगनू न अर्श पर तारा
कहीं भी सोज़-ए-तमन्ना का अब शरारा नहीं

ख़ुदा करे कि फ़रेब-ए-वफ़ा रहे क़ाएम
कि ज़िंदगी का कोई और अब सहारा नहीं