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अगर तुम को मुझ से मोहब्बत न होती | शाही शायरी
agar tumko mujhse mohabbat na hoti

ग़ज़ल

अगर तुम को मुझ से मोहब्बत न होती

क़ैसर उस्मानी

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अगर तुम को मुझ से मोहब्बत न होती
ये सौदा न होता ये वहशत न होती

जो हुस्न-ए-नज़र कार-फ़रमा न होता
जहाँ में कोई अच्छी सूरत न होती

बुतों से अगर होती ख़ाली ये दुनिया
ख़ुदा की भी कोई हक़ीक़त न होती

तेरी याद के साथ आते न आँसू
अगर मुझ को तुझ से मोहब्बत न होती

जो होता न मैं कुश्ता-ए-इश्क़ 'क़ैसर'
ये सूरत न होती ये हालत न होती