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अगर इस खेल में अब वो भी शामिल होने वाला है | शाही शायरी
agar is khel mein ab wo bhi shamil hone wala hai

ग़ज़ल

अगर इस खेल में अब वो भी शामिल होने वाला है

ज़फ़र इक़बाल

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अगर इस खेल में अब वो भी शामिल होने वाला है
तो अपना काम पहले से भी मुश्किल होने वाला है

हवा शाख़ों में रुकने और उलझने को है इस लम्हे
गुज़रते बादलों में चाँद हाइल होने वाला है

असर अब और क्या होना था उस जान-ए-तग़ाफ़ुल पर
जो पहले बेश ओ कम था वो भी ज़ाइल होने वाला है

ज़ियादा नाज़ अब क्या कीजिए जोश-ए-जवानी पर
कि ये तूफ़ाँ भी रफ़्ता रफ़्ता साहिल होने वाला है

हमीं से कोई कोशिश हो न पाई कारगर वर्ना
हर इक नाक़िस यहाँ का पीर-ए-कामिल होने वाला है

हक़ीक़त में बहुत कुछ खोने वाले हैं ये सादा-दिल
जो ये समझे हुए हैं उन को हासिल होने वाला है

हमारे हाल-मस्तों को ख़बर होने से पहले ही
यहाँ पर और ही कुछ रंग-ए-महफ़िल होने वाला है

चलो इस मरहले पर ही कोई तदबीर कर देखो
वगर्ना शहर में पानी तो दाख़िल होने वाला है

'ज़फ़र' कुछ और ही अब शो'बदा दिखलाइए वर्ना
ये दावा-ए-सुख़न-दानी तो बातिल होने वाला है