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अच्छे मौसम में तग-ओ-ताज़ भी कर लेता हूँ | शाही शायरी
achchhe mausam mein tag-o-taz bhi kar leta hun

ग़ज़ल

अच्छे मौसम में तग-ओ-ताज़ भी कर लेता हूँ

अंजुम सलीमी

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अच्छे मौसम में तग-ओ-ताज़ भी कर लेता हूँ
पर निकल आते हैं पर्वाज़ भी कर लेता हूँ

तुझ से ये कैसा तअ'ल्लुक़ है जिसे जब चाहूँ
ख़त्म कर देता हूँ आग़ाज़ भी कर लेता हूँ

गुम्बद-ए-ज़ात में जब गूँजने लगता हूँ बहुत
ख़ामुशी तोड़ के आवाज़ भी कर लेता हूँ

यूँ तो इस हब्स से मानूस हैं साँसें मेरी
वैसे दीवार में दर बाज़ भी कर लेता हूँ

सब के सब ख़्वाब मैं तक़्सीम नहीं कर देता
एक दो ख़्वाब पस-अंदाज़ भी कर लेता हूँ