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अब्र का टुकड़ा हो जैसे चाँद पर ठहरा हुआ | शाही शायरी
abr ka TukDa ho jaise chand par Thahra hua

ग़ज़ल

अब्र का टुकड़ा हो जैसे चाँद पर ठहरा हुआ

सलाहुद्दीन नदीम

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अब्र का टुकड़ा हो जैसे चाँद पर ठहरा हुआ
यूँ तिरे मुखड़े पे ज़ुल्फ़ों का घना साया हुआ

क़ुर्ब की लज़्ज़त से आँखों में घटा सी छा गई
और ये दिल है शराबी की तरह बहका हुआ

दिल समझता है तिरी रफ़्तार के उस्लूब को
तू अभी आया नहीं और हश्र सा बरपा हुआ

आश्नाई की हवा दिल के चमन में क्या चली
हर गुल-ए-मंज़र नज़र आया मुझे देखा हुआ

अब किसी ग़म का सितारा भी नहीं रौशन 'नदीम'
क्या मिरी आँखों में कोई चाँद है निकला हुआ