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अभी ज़मीन को सौदा बहुत सरों का है | शाही शायरी
abhi zamin ko sauda bahut saron ka hai

ग़ज़ल

अभी ज़मीन को सौदा बहुत सरों का है

असअ'द बदायुनी

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अभी ज़मीन को सौदा बहुत सरों का है
जमाव दोनों महाज़ों पे लश्करों का है

किसी ख़याल किसी ख़्वाब के सिवा क्या हैं
वो बस्तियाँ कि जहाँ सिलसिला घरों का है

उफ़ुक़ पे जाने ये क्या शय तुलू होती है
समाँ अजीब पुर-असरार पैकरों का है

ये शहर छोड़ के जाना भी मारका होगा
अजीब रब्त इमारत से पत्थरों का है

वो एक फूल जो बहता है सतह-ए-दरिया पर
उसे ख़बर है कि क्या दुख शनावरों का है

उतर गया है वो दरिया जो था चढ़ाओ पर
बस अब जमाव किनारों पे पत्थरों का है