अभी तो पर भी नहीं तौलता उड़ान को मैं
बिला-जवाज़ खटकता हूँ आसमान को मैं
मुफ़ाहमत न सिखा दुश्मनों से ऐ सालार
तिरी तरफ़ न कहीं मोड़ दूँ कमान को मैं
मिरी तलब की कोई चीज़ शश-जिहत में नहीं
हज़ार छान चुका हूँ तिरी दुकान को मैं
नहीं क़ुबूल मुझे कोई भी नई हिजरत
कटाऊँ क्यूँ किसी बल्वे में ख़ानदान को मैं
तुझे नख़ील-ए-फ़लक से पटख़ न दूँ आख़िर
तिरे समेत गिरा ही न दूँ मचान को मैं
ये काएनात मिरे सामने है मिस्ल-ए-बिसात
कहीं जुनूँ में उलट दूँ न इस जहान को मैं
जिसे पहुँच नहीं सकता फ़लासफ़ा का शुऊर
यक़ीं के साथ मिलाता हूँ उस गुमान को मैं
ग़ज़ल
अभी तो पर भी नहीं तौलता उड़ान को मैं
अख़्तर उस्मान