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अभी तो मौसम-ए-ना-ख़ुश-गवार आएगा | शाही शायरी
abhi to mausam-e-na-KHush-gawar aaega

ग़ज़ल

अभी तो मौसम-ए-ना-ख़ुश-गवार आएगा

शाद आरफ़ी

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अभी तो मौसम-ए-ना-ख़ुश-गवार आएगा
फिर इस के ब'अद पयाम-ए-बहार आएगा

ख़ुलूस-ए-अहद-ए-वफ़ा साज़गार आएगा
कभी तो मरहला-ए-ए'तिबार आएगा

जिस अंजुमन में दिलों के क़रार लुटते हैं
उस अंजुमन में पहुँच कर क़रार आएगा

लब-ए-शगुफ़्ता-ओ-मय-पाश पर शगूफ़ों पर
करोगे ग़ौर जहाँ तक निखार आएगा

यही है बज़्म-ए-तरब-आफ़रीं तो जाता हूँ
ये चारा-गर ने कहा था क़रार आएगा

सवाल-ए-बेश-ओ-कम-ए-मय नहीं मगर साक़ी
कभी तुझे भी शुऊर-ए-शुमार आएगा

पुकारने पे जब आया तो तेरा दीवाना
किसी भी नाम से तुझ को पुकार आएगा

निसार-ए-हुस्न-ए-मोहब्बत रही है देखोगे
कली के साथ ही शाख़ों पे ख़ार आएगा

जो है मिज़ाज-ए-बहार-ए-चमन से ना-वाक़िफ़
बरा-ए-सैर-ए-चमन बार बार आएगा

जिन्हें क़यास-ओ-शवाहिद से वास्ता है उन्हें
यक़ीन-ए-गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार आएगा

ये पुख़्ता-कार तग़ज़्ज़ुल ख़याल के बल पर
ग़ज़ल के शहर-ए-क़फ़स में गुज़ार आएगा