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अभी निकलो न घर से तंग आ के | शाही शायरी
abhi niklo na ghar se tang aa ke

ग़ज़ल

अभी निकलो न घर से तंग आ के

फ़िराक़ जलालपुरी

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अभी निकलो न घर से तंग आ के
अभी अच्छे नहीं तेवर हवा के

फ़लक से मैं चला शबनम की सूरत
ज़मीं ने रख दिया पत्थर बना के

मिरे ज़ख़्मी लबों पर कुछ नहीं है
सिवाए एक लफ़्ज़-ए-बे-नवा के

हमारी ख़ामुशी ने लाज रख ली
नहीं तो हाथ कट जाए सदा के

बदन ख़ुशबू का लर्ज़ां ख़ौफ़ से है
हवा को राज़-ए-दिल अपना सुना के

सरों के दीप हैं नेज़ों पे रौशन
मैं कैसे देखूँ मंज़र कर्बला के

तुम्हारे क़त्ल की ख़बरें छपी हैं
'फ़िराक़' अख़बार तो देखो उठा के