अबस ही महव-ए-शब-ओ-रोज़ वो दुआ में था
इलाज उस का अगर दर्द-ए-ला-दवा में था
ये और बात कि वो तिश्ना-ए-जवाब रहा
सवाल उस का मगर गूँजता फ़ज़ा में था
हमें ख़बर थी कि उस का जवाब क्या होगा
मगर वो लुत्फ़ जो इज़हार-ए-मुद्दआ में था
यक़ीं करें कि यहीं कोई जैसे कहता हो
कि जो भी देखा सुना था वो सब हवा में था
हम अपने-आप को क्या कुछ नहीं समझते थे
मगर खुला कि सफ़र ख़्वाब और ख़ला में था
ख़ुद अपने अक्स-ए-गुनह का था सामना उस को
तमाम उम्र वो आईना-ए-सज़ा में था
ग़ज़ल
अबस ही महव-ए-शब-ओ-रोज़ वो दुआ में था
फ़र्रुख़ जाफ़री