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अब वफ़ा रंग-ए-तमाशा कोई चेहरा न रहा | शाही शायरी
ab wafa rang-e-tamasha koi chehra na raha

ग़ज़ल

अब वफ़ा रंग-ए-तमाशा कोई चेहरा न रहा

इक़बाल अशहर कुरेशी

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अब वफ़ा रंग-ए-तमाशा कोई चेहरा न रहा
अपनी आँखों की चमक पर भी भरोसा न रहा

हम तो आए थे मुलाक़ात करेंगे तुझ से
ये ख़बर कब थी कि तू अपने ही जैसा न रहा

लोग कहते हैं कि हर चीज़ समझती है हमें
मैं बहुत ख़ुश हूँ कि अब कोई अधूरा न रहा

उस के मिलने की ख़ुशी उस के बिछड़ने का क़लक़
एक गर्दिश थी कि वो आ गया ठहरा न रहा

उस ने काग़ज़ को भी फूलों की तरह चूम लिया
पेश ख़ुश्बू ही करें दूसरा तोहफ़ा न रहा