अब मुझ से ये रात तय न होगी
पत्थर ये जबीं न है न होगी
ख़ुर्शीद न हो तो शहर-ए-दिल में
परछाईं सी कोई शय न होगी
दरवाज़ा खटक उठेगा इक बार
दस्तक कभी पय-ब-पय न होगी
आँखों में लहू संभाल रखना
अब के मीना में मय न होगी

ग़ज़ल
अब मुझ से ये रात तय न होगी
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी