अब लब पे वो हंगामा-ए-फ़रियाद नहीं है
अल्लाह रे तिरी याद कि कुछ याद नहीं है
आती है सबा सू-ए-लहद उन की गली से
शायद मिरी मिट्टी अभी बर्बाद नहीं है
अल्लाह बचाए असर-ए-ज़ब्त से उन को
बेदाद तो है शिकवा-ए-बेदाद नहीं है
अपनी ही बदौलत है नशेमन की ख़राबी
मिन्नत-कश-ए-बे-दर्दी-ए-सय्याद नहीं है
आमादा-ए-फ़रियाद-रसी है वो सितमगर
फ़रियाद कि अब ताक़त-ए-फ़रयाद नहीं है
दुनिया में दयार-ए-दिल-ए-'फ़ानी' के सिवा हाए
कोई भी वो बस्ती है जो आबाद नहीं है
ग़ज़ल
अब लब पे वो हंगामा-ए-फ़रियाद नहीं है
फ़ानी बदायुनी