EN اردو
अब किसी को नहीं मिरा अफ़्सोस | शाही शायरी
ab kisi ko nahin mera afsos

ग़ज़ल

अब किसी को नहीं मिरा अफ़्सोस

सिराज फ़ैसल ख़ान

;

अब किसी को नहीं मिरा अफ़्सोस
जान कर ये बहुत हुआ अफ़्सोस

दुख नहीं ये जहाँ मुख़ालिफ़ है
साथ अपने नहीं ख़ुदा अफ़्सोस

लड़ के बर्बाद हो गए जब हम
साथ मिल कर किया गया अफ़्सोस

जब भी ख़ुशियों ने दर पे दस्तक दी
सामने आ खड़ा हुआ अफ़्सोस

हम फ़क़त जंग ही नहीं हारे
हौसला भी बिखर गया अफ़्सोस

इक ग़ज़ल और हो गई हम से
शे'र कोई नहीं हुआ अफ़्सोस

आप को मैं ने ठेस पहुँचाई
मैं ने बेहद बुरा किया अफ़्सोस

ख़ूब-सूरत बहुत नज़र आए
जब मिरा दिल नहीं रहा अफ़्सोस

मुझ को ख़ुद पर यक़ीं नहीं जानाँ
तुम ने मुझ पर यक़ीं किया अफ़्सोस

मैं ने बाक़ी नहीं रखा कुछ भी
आप ने कुछ नहीं किया अफ़्सोस

तू है शर्मिंदा इल्म है लेकिन
तू नज़र से उतर गया अफ़्सोस

आदमी तू 'सिराज' अच्छा था
इतनी जल्दी गुज़र गया अफ़्सोस

फ़ातिहा पढ़ कि फूल रख मुझ पर
आ गया है तो कुछ जता अफ़्सोस

उस ने बर्बाद कर दिया मुझ को
उस को इस का नहीं ज़रा अफ़्सोस

मुझ को तुम पर बहुत भरोसा था
तुम ने मायूस कर दिया अफ़्सोस

ऐ ख़ुदा है हसीं तिरी दुनिया
पर मिरा जी उचट गया अफ़्सोस