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अब कौन बात रह गई ये बात भी गई | शाही शायरी
ab kaun baat rah gai ye baat bhi gai

ग़ज़ल

अब कौन बात रह गई ये बात भी गई

मुबारक अज़ीमाबादी

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अब कौन बात रह गई ये बात भी गई
यानी कभी कभी की मुलाक़ात भी गई

कहते हैं वो कि जज़्बा-ए-दिल अब फ़रेब है
जब दिल गया तो दिल की करामात भी गई

जो कुछ किया वो तू ने किया इज़्तिराब-ए-शौक़
सौ आफ़तें भी आईं मिरी बात भी गई

दस्तार आप की जो हुई रेहन-ए-मै-कदा
तौबा हमारी क़िबला-ए-हाजात भी गई

वादे की कौन रात क़यामत का दिन नहीं
आसार-ए-सुब्ह कहते हैं ये रात भी गई

माना कि दिन सिधारे 'मुबारक' शबाब के
रंगीं तबीअतों से मुलाक़ात भी गई