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अब ऐसे दश्त-मिज़ाजों से दूर घर लिया जाए | शाही शायरी
ab aise dasht-mizajon se dur ghar liya jae

ग़ज़ल

अब ऐसे दश्त-मिज़ाजों से दूर घर लिया जाए

राना आमिर लियाक़त

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अब ऐसे दश्त-मिज़ाजों से दूर घर लिया जाए
बजाए हसरत ओ गिर्या कुछ और कर लिया जाए

मैं हाव-हू पे कहानी को ख़त्म कर दूँगा
ये आम बात नहीं है, इसे ख़बर लिया जाए

ये नुक्ता इश्क़-नगर ने मुझे किया तालीम
कि जिस को ज़ेर कहा जाए वो ज़बर लिया जाए

हमें ये इश्क़ बहुत रास आने लग गया है
तो क्या ख़याल है, फिर दूसरा भी कर लिया जाए

मैं अपने दोस्त के पहले हदफ़ से वाक़िफ़ था
ये बे-ध्यानी नहीं मेरी, दरगुज़र लिया जाए