अब ऐ बे-दर्द क्या इस के लिए इरशाद होता है
फिर अपनी ख़ाक से पैदा दिल-ए-बर्बाद होता है
तसव्वुर जब अनीस-ए-ख़ातिर-ए-नाशाद होता है
जहान-ए-दिल तिरी तस्वीर से आबाद होता है
असीरान-ए-वफ़ा घबराएँ क्यूँ तज्वीज़-ए-ज़िंदाँ से
यहीं तो इम्तिहान-ए-फ़ितरत-ए-आज़ाद होता है
जगह मिलती नहीं जिस को शब-ए-ग़म महशर-ए-दिल में
वो हंगामा लब-ए-ख़ामोश में आबाद होता है
बहार आई है इस्तिक़बाल करने बाब-ए-ज़िंदाँ तक
नहीं मालूम 'सीमाब' आज कौन आज़ाद होता है
ग़ज़ल
अब ऐ बे-दर्द क्या इस के लिए इरशाद होता है
सीमाब अकबराबादी