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अब आप रह-ए-दिल जो कुशादा नहीं रखते | शाही शायरी
ab aap rah-e-dil jo kushada nahin rakhte

ग़ज़ल

अब आप रह-ए-दिल जो कुशादा नहीं रखते

शकेब जलाली

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अब आप रह-ए-दिल जो कुशादा नहीं रखते
हम भी सफ़र-ए-जाँ का इरादा नहीं रखते

पीना हो तो इक जुरआ-ए-ज़हराब बहुत है
हम तिश्ना-दहन तोहमत-ए-बादा नहीं रखते

अश्कों से चराग़ाँ है शब-ए-ज़ीस्त सो वो भी
कोताही-ए-मिज़्गाँ से ज़ियादा नहीं रखते

ये गर्द-ए-रह-ए-शौक़ ही जम जाए बदन पर
रुस्वा हैं कि हम कोई लबादा नहीं रखते

हर गाम पे जुगनू सा चमकता है जो दिल में
हम इस के सिवा मिशअल-ए-जादा नहीं रखते

सुर्ख़ी नहीं फूलों की तो ज़ख़्मों की शफ़क़ है
दामान-ए-तलब हम कभी सादा नहीं रखते