आया है ख़याल-ए-बे-वफ़ाई
क्यूँ जी वही गुफ़्तुगू फिर आई
ओ बुत न सुनेगा कोई मेरी
क्या तेरी ही हो गई ख़ुदाई
रोको रोको ज़बान रोको
देने न लगो कहीं दुहाई
सहरा में हुई गुहर-फ़िशानी
काम आई मिरी बरहना-पाई
चाहा लेकिन न बच सके हम
आख़िर तेग़-ए-निगाह खाई
तोड़ा काँटों ने आबलों को
बरबाद हुई मिरी कमाई
बोसा हम आज माँगते हैं
करते हैं क़िस्मत-आज़माई
तौबा-शिकनी शबाब में कर
कब तक ऐ जान-ए-पारसाई
काटा दिन तो तड़प तड़प कर
आफ़त की रात सर पर आई
रुख़्सत है 'नसीम' जल्द देखो
कर लो गर हो सके भलाई
ग़ज़ल
आया है ख़याल-ए-बे-वफ़ाई
नसीम देहलवी