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आसमाँ सूरज सितारे बहर-ओ-बर किस के लिए | शाही शायरी
aasman suraj sitare bahr-o-bar kis ke liye

ग़ज़ल

आसमाँ सूरज सितारे बहर-ओ-बर किस के लिए

नजीब अहमद

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आसमाँ सूरज सितारे बहर-ओ-बर किस के लिए
ये सफ़र किस के लिए रख़्त-ए-सफ़र किस के लिए

वो हरे दिन वो भरे मौसम तो कब के जा चुके
हाथ फैलाए खड़े हैं अब शजर किस के लिए

दिन निकलते ही निकल आए थे किस की खोज में
शाम ढलते ही चले आए हैं घर किस के लिए

तू किसी का मुंतज़िर कब था मगर ये तो बता
उम्र-भर दिल का खुला रक्खा है दर किस के लिए

कौन दरियाओं की हैबत ओढ़ कर निकला 'नजीब'
चीख़ उट्ठे हैं समुंदर में भँवर किस के लिए