आसमाँ का सितारा न महताब है
क़ल्ब-गह में जो इक जिंस-ए-नायाब है
आईना आईना तैरता कोई अक्स
और हर ख़्वाब में दूसरा ख़्वाब है
और है शम्अ के बतन में रौशनी
तेरे आईने में और ही आब है
ये चराग़ और है वो सितारा है और
और आगे जो इक हिज्र का बाब है
और फैली हुई है जो इक धुँद सी
और अक़ब में जो इक ज़ीना-ए-ख़्वाब है
बस वो लम्हा जो तुझ से इबारत हुआ
बाक़ी जो चीज़ है वो फ़ना-याब है
ख़्वाब ने तो रक़म कर दिया था तुझे
हासिल-ए-शब यही चश्म-ए-पुर-आब है
ग़ज़ल
आसमाँ का सितारा न महताब है
अतीक़ुल्लाह