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आसमाँ का रंग मेरी ज़ात में घुल जाएगा | शाही शायरी
aasman ka rang meri zat mein ghul jaega

ग़ज़ल

आसमाँ का रंग मेरी ज़ात में घुल जाएगा

शमीम फ़ारूक़ी

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आसमाँ का रंग मेरी ज़ात में घुल जाएगा
देखना इक दिन गुबार-ए-जिस्म भी धुल जाएगा

एक इक कर के परिंदे उड़ रहे हैं शाख़ से
ऐसा लगता है कि जैसे मौसम-ए-गुल जाएगा

ख़ौफ़ की देवी को आख़िर मिल गया उस का पता
उस के शेरों से भी अब रंग-ए-तग़ज़्ज़ुल जाएगा

दर्द के झोंकों से बचना अब कहाँ मुमकिन 'शमीम'
बंद होगा एक दर तो दूसरा खुल जाएगा