आशिक़ी में है जान का खटका
और भी कुछ बुरा भला खटका
यार सय्याद बाग़बाँ का हुआ
ये नया और इक बँधा खटका
कान आहट की राह से न हटे
दिल में था किस के आने का खटका
वही काविश मिज़ा ने की आख़िर
जिस का अव्वल से दिल में था खटका
बुलबुल-ए-पाक-बीं है आशिक़-ए-गुल
बाग़बाँ तू न खटखटा खटका
बे तिरे यार सैर-ए-गुलशन में
फूल आँखों में ख़ार सा खटका
तुझ को देखा उठा उठा कर सर
साँस का भी अगर हुआ खटका
इश्क़ के हैं 'वक़ार' चार उंसुर
ख़ौफ़ अंदेशा-ओ-दग़ा खटका

ग़ज़ल
आशिक़ी में है जान का खटका
किशन कुमार वक़ार