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आसार-ए-जुनूँ बे-सर-ओ-सामाँ नहीं होते | शाही शायरी
aasar-e-junun be-sar-o-saman nahin hote

ग़ज़ल

आसार-ए-जुनूँ बे-सर-ओ-सामाँ नहीं होते

मुईद रशीदी

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आसार-ए-जुनूँ बे-सर-ओ-सामाँ नहीं होते
हम शहर-ए-तहय्युर में परेशाँ नहीं होते

रस्ते में तिलिस्मात बिछी जाती हैं हर दम
हम ख़ू-ए-सफ़र सूरत-ए-हैराँ नहीं होते

माज़ी की तनाबों से लगे दर्द के ख़ेमे
क्या जानिए क्यूँ दीदा-ए-इम्काँ नहीं होते

ख़्वाबों की हवेली से रवाँ शोर-ए-मुसलसल
आवाज़-ए-जरस के लिए ज़िंदाँ नहीं होते

हम ज़ब्त की तारीख़ के हैं बाब 'रशीदी'
हम ज़ब्त की तारीख़ में पिन्हाँ नहीं होते