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आसाँ नहीं है जादा-ए-हैरत उबूरना | शाही शायरी
aasan nahin hai jada-e-hairat uburna

ग़ज़ल

आसाँ नहीं है जादा-ए-हैरत उबूरना

इफ़्तिख़ार फलक काज़मी

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आसाँ नहीं है जादा-ए-हैरत उबूरना
हैराँ हुए बग़ैर उसे मत उबूरना

मेरे ख़िलाफ़ कोई भी बकता रहे मगर
सीखा है मैं ने सरहद-ए-तोहमत उबूरना

सद-आफ़रीं ख़याल तो अच्छा है वाक़ई
आँखों को बंद कर के मोहब्बत उबूरना

आवारगान-ए-इश्क़ ज़रा एहतियात से
लज़्ज़त के बा'द लज़्ज़त-ए-शहवत उबूरना

ता'मीर-ए-माह-ओ-साल में ताख़ीर के बग़ैर
किस को रवा है अर्सा-ए-मोहलत उबूरना

जुज़्व-ए-बदन बनेगा तो बाहर भी आएगा
ये ज़ख़्म थोड़ी देर से हज़रत उबूरना