आरज़ू-ए-दिल का ये अंजाम होना चाहिए
क्या मुझे भी इश्क़ में नाकाम होना चाहिए
क्यूँ भला इबलीस को इल्ज़ाम देते हो फ़क़त
तुम को ख़ैर-ओ-शर का भी इल्हाम होना चाहिए
बाप की दस्तार बेचें बहन की खींचें रिदा
मर्द की ग़ैरत पे अब नीलाम होना चाहिए
मतलबी दुनिया में है गुम इब्न-ए-आदम इस क़दर
काम होना चाहिए बस काम होना चाहिए
ढूँडने से गर नहीं मिलता ख़ुदा फिर ढूँढिए
सुब्ह उस की जुस्तुजू में शाम होना चाहिए
गर नसीबों में नहीं वो शख़्स लिखा ऐ ख़ुदा
कुछ दुआओं का मिरी इनआ'म होना चाहिए
इश्क़ की मेराज हो ऐ काश ऐसा मो'जिज़ा
नाम कोई ले वो मेरा नाम होना चाहिए
गर तुझे बनना है 'तिश्ना' शाएरा इक बे-बदल
तेरे हर इक शे'र में इबहाम होना चाहिए

ग़ज़ल
आरज़ू-ए-दिल का ये अंजाम होना चाहिए
हुमैरा गुल तिश्ना