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आप की बस ये निशानी रह गई | शाही शायरी
aap ki bas ye nishani rah gai

ग़ज़ल

आप की बस ये निशानी रह गई

सिया सचदेव

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आप की बस ये निशानी रह गई
उलझनों में ज़िंदगानी रह गई

झूट आया सामने सच की तरह
दूर रोती हक़-बयानी रह गई

जिस के दो किरदार थे तुम और मैं
याद मुझ को वो कहानी रह गई

जिस का कह देना ज़रूरी था बहुत
बात वो तुम को बतानी रह गई

ख़ाक में लिपटा हुआ बचपन गया
कर्ब में लिपटी जवानी रह गई

उम्र गुज़री है ग़ुलामों की तरह
नाम की वो सिर्फ़ रानी रह गई