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आप के दिल का मिरे दिल का नफ़ाज़ | शाही शायरी
aap ke dil ka mere dil ka nafaz

ग़ज़ल

आप के दिल का मिरे दिल का नफ़ाज़

नूह नारवी

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आप के दिल का मिरे दिल का नफ़ाज़
क्या करे मक़्तूल-ओ-क़ातिल का नफ़ाज़

फिर गया मुझ को ज़बाँ दे कर कोई
खुल गया यूँ ऊपरी दिल का नफ़ाज़

जादा-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा में चाहिए
रहरवों पर शौक़-ए-मंज़िल का नफ़ाज़

मर गए लाखों गला ख़ुद काट कर
अल्लाह अल्लाह तेग़-ए-क़ातिल का नफ़ाज़

हम ने पाया हम ने देखा जा-ब-जा
इश्क़-ए-सादिक़ हुस्न-ए-कामिल का नफ़ाज़

फिर गए नावक भी उन के देख कर
मेरे दिल में हसरत-ए-दिल का नफ़ाज़

पहले देख आईना ऐ आईना-रू
जाँच फिर मद्द-ए-मुक़ाबिल का नफ़ाज़

पाँव रखना मुझ को मुश्किल हो गया
था ये हुक्म-ए-मीर-ए-महफ़िल का नफ़ाज़

जज़्ब-ए-कामिल इश्क़ में है ख़ास चीज़
हो न क्यूँकर जज़्ब-ए-कामिल का नफ़ाज़

अश्क आँखों से रुकें मुमकिन नहीं
दिल ही तक महदूद है दिल का नफ़ाज़

'नूह' ग़र्क़-ए-बहर-ए-उल्फ़त हो गए
काम आया कुछ न साहिल का नफ़ाज़