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आप इज़्ज़त-मआब सच-मुच के | शाही शायरी
aap izzat-maab sach-much ke

ग़ज़ल

आप इज़्ज़त-मआब सच-मुच के

साजिद प्रेमी

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आप इज़्ज़त-मआब सच-मुच के
लोग कम हैं जनाब सच-मुच के

आप सब को ख़राब कहते हैं
लोग कुछ हैं ख़राब सच-मुच के

कुछ तो परसंग याद आते हैं
थे कथा में जो बाब सच-मुच के

अपनी ता'बीर पा रहे हैं जो
मैं ने देखे हैं ख़्वाब सच-मुच के

कुछ नज़र आ रहे हैं महफ़िल में
देख लो माहताब सच-मुच के

तितलियाँ फिर वहीं पे उतरेंगी
खिलने दीजिए गुलाब सच-मुच के

पास जिन के नहीं है इक मिस्रा
वो हैं शाएर जनाब सच-मुच के