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आप अपना निशाँ नहीं मा'लूम | शाही शायरी
aap apna nishan nahin malum

ग़ज़ल

आप अपना निशाँ नहीं मा'लूम

याक़ूब अली आसी

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आप अपना निशाँ नहीं मा'लूम
लुट गए हम कहाँ नहीं मा'लूम

ले चला है जुनून-ए-शौक़ किधर
होगी मंज़िल कहाँ नहीं मा'लूम

दौड़ता हूँ ग़ुबार के पीछे
है कहाँ कारवाँ नहीं मालूम

झुक गया सर-बसद ख़ुलूस-ओ-नियाज़
किस का है आस्ताँ नहीं मा'लूम

एक हलचल है ख़ाना-ए-दिल में
कौन है मेहमाँ नहीं मा'लूम

बर्क़ चमकी थी एक बार यहाँ
क्या हुआ आशियाँ नहीं मा'लूम

जाने किस के ख़याल में 'आसी'
हो गए गुम कहाँ नहीं मा'लूम