आप आए थे याँ जफ़ा के लिए
जाइए भी कहीं ख़ुदा के लिए
दिल दिया था तुम्हें जफ़ा के लिए
होश में आइए ख़ुदा के लिए
तेरे बाज़ार-ए-दहर में गर्दूं
हम भी आए हैं इक क़बा के लिए
पाँव हैं कूचा-ए-तवक्कल में
हाथ उठते नहीं दुआ के लिए
आ कभी तो मिरे क़फ़स की तरफ़
ऐ नसीम-ए-चमन ख़ुदा के लिए
है तह-ए-ख़ाक फ़र्श-ए-ख़ाक लगा
शाह के वास्ते गदा के लिए
दम फड़कता है तौफ़-ए-काबा पर
दिल तड़पता है कर्बला के लिए
सर उठाए हैं ख़ार-ए-दश्त-ए-जुनूँ
'मुंतही' से बरहना-पा के लिए

ग़ज़ल
आप आए थे याँ जफ़ा के लिए
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही