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आँखों में बस रहा है अदा के बग़ैर भी | शाही शायरी
aankhon mein bas raha hai ada ke baghair bhi

ग़ज़ल

आँखों में बस रहा है अदा के बग़ैर भी

हसन नईम

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आँखों में बस रहा है अदा के बग़ैर भी
दिल उस को सुन रहा है सदा के बग़ैर भी

खिलते हैं चंद फूल बयाबाँ में बे-सबब
गिरते हैं कुछ दरख़्त हवा के बग़ैर भी

मैं हूँ वो शाह-बख़्त कि दरबार-ए-हुस्न में
चलता है अपना काम वफ़ा के बग़ैर भी

मुंसिफ़ को सब ख़बर है मगर बोलता नहीं
मुझ पर हुआ जो ज़ुल्म सज़ा के बग़ैर भी

बंदों ने जब से काम सँभाला है दहर का
नाज़िल है रोज़ क़हर ख़ुदा के बग़ैर भी

उर्दू ग़ज़ल के दम से वो तहज़ीब बच गई
मिटने का जिस के गुल था फ़ना के बग़ैर भी