आँखों के ख़्वाब दिल की जवानी भी ले गया
वो अपने साथ मेरी कहानी भी ले गया
ख़म-चम तमाम अपना बस इक उस के दम से था
वो क्या गया कि आग भी पानी भी ले गया
टूटा तअल्लुक़ात का आईना इस तरह
अक्स-ए-नशात-ए-लम्हा-ए-फ़ानी भी ले गया
कूचे में हिजरतों के हूँ सब से अलग-थलग
बिछड़ा वो यूँ कि रब्त-ए-मकानी भी ले गया
थे सब उसी के लम्स से जल-थल बने हुए
दरिया मुड़ा तो अपनी रवानी भी ले गया
अब क्या खुलेगी मुंजमिद अल्फ़ाज़ की गिरह
वो हिम्मत-ए-कशूद-ए-मआनी भी ले गया
सर-जोशी-ए-क़लम को 'फ़ज़ा' चुप सी लग गई
वो जाते जाते शोला-बयानी भी ले गया
ग़ज़ल
आँखों के ख़्वाब दिल की जवानी भी ले गया
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी