आँख के साहिल पर आते ही अश्क हमारे डूब गए
ग़म का सावन इतना बरसा सारे सहारे डूब गए
इस को खेल कहें क़िस्मत का या हम दरिया की साज़िश
तूफ़ानों से बच निकले तो आ के किनारे डूब गए
जज़्बा-ए-मोहब्बत ये तो बता कब आएगा आने वाला
रात सिमटती जाती है और चाँद सितारे डूब गए
नील-गगन पर उड़ते पंछी लौट के आ जा घर अपने
रात का आँचल लहराया है दिन के नज़ारे डूब गए
दरिया के वो पार हुए हैं चाहत से जो दूर रहे
प्यार की कश्ती खेने वाले सब बेचारे डूब गए
उन पर कुछ पैग़ाम लिखे थे जो तुझ से वाबस्ता थे
उड़ते उड़ते दूर उफ़ुक़ में जो ग़ुब्बारे डूब गए
उस ने तो हम को ही 'ज़िया' दरिया में डुबोना चाहा था
लेकिन थे जो साथ हमारे वो भी सारे डूब गए
ग़ज़ल
आँख के साहिल पर आते ही अश्क हमारे डूब गए
सय्यद ज़िया अल्वी