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आने-जाने का है ये रस्ता क्यूँ | शाही शायरी
aane-jaane ka hai ye rasta kyun

ग़ज़ल

आने-जाने का है ये रस्ता क्यूँ

शाह हुसैन नहरी

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आने-जाने का है ये रस्ता क्यूँ
है बिछड़ना अगर तो मिलना क्यूँ

हाथ आया तो फिर परिंदा क्या
और उड़ा जो कहीं तो मेरा क्यूँ

किस फ़रिश्ते की बात करते हो
जब बुरा ही नहीं वो अच्छा क्यूँ

हो के नाराज़ मुझ से कहते हैं
ज़ुल्मतों के लिए हो ख़तरा क्यूँ

क्यूँ नहीं देखता हवा का रुख़
'शाह' बनता है फिर निशाना क्यूँ