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आन पहुँचे हैं ये कहाँ हम लोग | शाही शायरी
aan pahunche hain ye kahan hum log

ग़ज़ल

आन पहुँचे हैं ये कहाँ हम लोग

ख़ादिम रज़्मी

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आन पहुँचे हैं ये कहाँ हम लोग
अब ज़मीं हैं न आसमाँ हम लोग

कल यक़ीं बाँटते थे औरों में
अब हैं ख़ुद से भी बद-गुमाँ हम लोग

किन हवाओं की ज़द में आए हैं
हो गए हैं धुआँ धुआँ हम लोग

चुप तो पहले भी झेलते थे मगर
इस क़दर कब थे बे-ज़बाँ हम लोग

कब मयस्सर कोई किनारा हो
कब समेटेंगे बादबाँ हम लोग

बन गए राख अब न-जाने क्यूँ
थे कभी शोला-ए-तपाँ हम लोग

हम को जाना था किस तरफ़ 'रज़्मी'!
और किस सम्त हैं रवाँ हम लोग