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आज मय-ख़ाने में बरकत ही सही | शाही शायरी
aaj mai-KHane mein barkat hi sahi

ग़ज़ल

आज मय-ख़ाने में बरकत ही सही

नातिक़ गुलावठी

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आज मय-ख़ाने में बरकत ही सही
मय-कशो आओ इबादत ही सही

चाहिए कुछ तो प-ए-नज़्र-ए-करम
ऐ गुनहगार नदामत ही सही

मअ'नी-ए-हुस्न समझ लेंगे कभी
अभी महविय्यत-ए-सूरत ही सही

ज़िंदगी मौत से बेहतर है ज़रूर
है मुसीबत तो मुसीबत ही सही

न सही बर-तरफ़ ऐ हुस्न अभी
चार दिन की हमें रुख़्सत ही सही

है हमें अपनी मोहब्बत से ग़रज़
उन को नफ़रत है तो नफ़रत ही सही

ज़िंदगी कट तो रही है 'नातिक़'
ख़ैर ग़ुर्बत है तो ग़ुर्बत ही सही