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आईना सा अँधेरी रात का मैं | शाही शायरी
aaina sa andheri raat ka main

ग़ज़ल

आईना सा अँधेरी रात का मैं

नोमान इमाम

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आईना सा अँधेरी रात का मैं
ख़्वाब हूँ ख़्वाहिश-ए-नशात का मैं

ख़ौफ़ इक टूटती क़नात का मैं
या तज़ब्ज़ुब हिसार-ए-ज़ात का मैं

चाल से किस की पिट गया हूँ मैं
जाने मोहरा हूँ किस बिसात का मैं

मैं हूँ अपने हुनर पे वारफ़्ता
या हूँ क़ातिल तिरी सिफ़ात का मैं

डूबती आँख में तसव्वुर सा
धूप में रंग-ए-बे-हयात का मैं

बे-सबाती की धुँद में लिपटा
रास्ता हूँ तिरे सबात का मैं

ज़िंदगी कर्बला का इक लम्हा
और प्यासा लब-ए-फ़ुरात का मैं