आह को समझे हो क्या दिल से अगर हो जाएगी
वो तो वो उन के फ़रिश्तों को ख़बर हो जाएगी
पूरी क्या मूसा तमन्ना तूर पर हो जाएगी
तुम अगर ऊपर गए नीची नज़र हो जाएगी
क्या इन आहों से शब-ए-ग़म मुख़्तसर हो जाएगी
ये सहर होने की बातें हैं सहर हो जाएगी
आ तो जाएँगे वो मेरी आह-ए-पुर-तासीर से
महफ़िल-ए-दुश्मन में रुस्वाई मगर हो जाएगी
किस से पूछेंगे वो मेरे रात के मरने का हाल
तू भी अब ख़ामोश ऐ शम-ए-सहर हो जाएगी
ये बहुत अच्छा हुआ आएँगे वो पिछले पहर
चाँदनी भी ख़त्म जब तक ऐ 'क़मर' हो जाएगी
ग़ज़ल
आह को समझे हो क्या दिल से अगर हो जाएगी
क़मर जलालवी