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आएँ वो लाख देखने वालों के सामने | शाही शायरी
aaen wo lakh dekhne walon ke samne

ग़ज़ल

आएँ वो लाख देखने वालों के सामने

साहिर सियालकोटी

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आएँ वो लाख देखने वालों के सामने
उठती है आँख महर-जमालों के सामने

मुमकिन नहीं जवाब तिरी चश्म-ए-मस्त का
ये फ़ैसला हुआ है ग़ज़ालों के सामने

तन्हा न एक हज़रत-ए-मूसा को ग़श हुआ
ठहरा है कौन बर्क़-जमालों के सामने

हो जाए हुस्न को न किसी की नज़र कहीं
अच्छे नहीं हैं देखने वालों के सामने

दुनिया में नेक-ओ-बद तो कोई चीज़ ही नहीं
होना है सब को अपने ख़यालों के सामने